डीडीयू नगर। भगवान अपने भक्तों का बुरा कभी नहीं चाहते। जिस प्रकार भक्त भगवान को चाहता है उसी प्रकार भगवान भी भक्तों को चाहते हैं। भक्तों के अंदर अहंकार पैदा होता है तो भगवान उसका शमन अवश्य करते हैं। ठाकुर जी द्वारा गोवर्धन पूजा की लीला कराना प्रकृति प्रेम का संदेश देना है। प्रकृति में ही जीवन है उक्त बातें स्थानीय आर्य समाज मंदिर के पीछे एक प्रांगण में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिवस की अमृत रूपी कथा में व्यासपीठ से कथा का रसपान कराते हुए अखिलानंद जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि संतों ने दर्शन कराया है कि गोवर्धन लीला का अर्थ है गो अर्थात अपनी इंद्रियों को संयमित करना। |
गोवर्धन लीला का अभिप्राय गौ माता से है, गौ संवर्धन ही गोवर्धन है। गौ की रक्षा करना, उसकी सेवा करना हमारा पुनीत कर्तव्य ही नहीं परम धर्म भी है। लीला के बाबत उन्होंने बताया कि इंद्र को जब अपने पर अभिमान हुआ तो श्री ठाकुर जी ने उस अभिमान का शमन करने हेतु गोवर्धन लीला की। आगे उन्होंने रासलीला पर चर्चा करते हुए कहा कि सांसारिक जीव रास में काम का दर्शन करता है, किंतु वास्तविक रूप में काम का विनाश ही महारास है। यदि रास में काम होता तो आतुर अवस्था में भूत भावन भगवान शंकर नारी रूप धर कर रास करने नहीं आते। धर्म सम्राट महाराज परीक्षित रास की कथा नहीं सुनते और श्री शुकदेव जी जैसे महा ज्ञानी निर्गुण ब्रह्म के उपासक कभी महारास की कथा नहीं करते। रासलीला के दौरान जितनी भी गोपिकाएँ हैं वह ऋषि रूपा गोपिकाएँ है। रास के समय ऋषियों ने गोपिका का रूप धारण करते हुए लीला स्थल पर पहुंचे और भगवान के साथ रासलीला करते हैं। वास्तव में आध्यात्मिक दृष्टि से रासलीला में भगवान ने काम को पराजित किया है। महाराज श्री ने आज के कथा के अंतिम चरण में कंस के उद्धार के विषय गत प्रवचन करते हुए कहा कि कंस का उद्धार करने के लिए तथा आसुरी प्रवृत्ति का शमन करने के लिए भगवान अवतरित हुए। कथा में संजय अग्रवाल, मिलन अग्रवाल, उपेन्द्र सिंह , दिनेश सिंह, बृजेश सिंह, कृष्णानन्द मिश्रा, रेखा अग्रवाल, ममता तिवारी, संजय तिवारी, संतोष शर्मा अतुल दूबे, आलोक पांडेय, संतोष पाठक, शिवम मिश्रा, अरूण तिवारी, धर्मेन्द्र पांडेय सहित भक्तगण मौजूद रहे ।